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हम सभी जानते है की सभी बहुकोशिकीय जीव का निर्माण किसी दूसरे बहुकोशिकीय
जीव के शरीर में होता है। प्रकृति में प्रत्येक जीव अपने एक अलग गुण के साथ पैदा
होता है। और उसके अन्दर अपने पूर्वज की तरह के ही आकार, विचार तथा आहार होते है
जैसे शेर का बच्चा शेर होता है तथा उसके विचार हिंसक होते है तथा आहार मांसाहार
होता है। ये प्रकृति के द्वारा हर जीव को दिया गया वरदान है की प्रत्येक जीव अपने
द्वारा अपने जाति के जीवों की संख्या बढ़ा सकता है। मानव में भी यह गुण पाया जाता
है।
जब कोई महिला गर्भ धारण करती है तो उसके मन में यह जिज्ञासा रहती है की मेरे अन्दर मेरे बच्चे का विकास किस तरह हो रहा होगा या वह अन्दर किस तरह से रहता होगा। ये जिज्ञासा शिशु के पिता के अन्दर भी होती है। इसलिए हम आज यह जानेंगे की बच्चा कैसे बनता है हिंदी में। मानव का बच्चा स्त्रियों के गर्भाशय में विकसित होता है। जहाँ उसे विकसित होने के लिए 9 महीने का समय लगता है। इन 9 महीनो में शिशु का धीरे-धीरे विकास होता है। यहाँ उसे उसकी माँ के शरीर से पोषण प्राप्त होता है। माँ से मिलने वाले इसी पोषण से बच्चे का निर्माण होता है।
प्रकृति में जनन एक आवश्यक क्रिया है इसी क्रिया के कारण ही जीव से
जीव की उत्पत्ति होती है। मानव में भी जनन के द्वारा ही नए मनुष्य का निर्माण होता
है। इस धरती पर मानव व डॉलफिन ही दो ऐसे जीव है जो शारीरिक सुख प्राप्त करने
के लिए भी शारीरिक सम्बन्ध बनाते है। इनके अलावा सभी जीव शारीरिक सम्बन्ध
तभी बनाते है जब उन्हें एक नए जीव का निर्माण करना होता है।
मानवों में प्रजनन sexual होता है। जनन क्रिया के लिए पुरुषों में अलग अंग
तथा महिलाओं में अलग अंग पाए जाते है मगर जनन क्रिया के लिए दोनों एक निश्चित उम्र
में परिपक्व होते है। बचपन में पुरुष व महिला में अंतर कर पाना मुश्किल होता है
क्योंकि दोनों सामान रूप से दिखते है परन्तु इनके परिपक्व होने के पश्चात इनमे
बहुत सी असमानता उत्पन्न हो जाती है। ये इनके शारीर में उपस्थित हारमोंस के कारण
होता है पुरुषों में टेस्टेस्टेरोन हार्मोन पाया जाता है तथा महिलाओं में
एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टेरोन पाए जाते है।
“आप जानेंगे Sex to baby Birth, गर्भ में बच्चा कैसे रहता है।“ baby in womb
मनुष्य में प्रजनन के लिए
स्त्री व पुरुष में शारीरिक सम्बन्ध बनाना (sex) आवश्यक है। यौन
क्रिया के समय जब पुरुष अपने लिंग के द्वारा महिला की योनि में वीर्य को छोड़ता है
तो इसे वीर्यसेचन (Ejaculation) कहा जाता है। वीर्यसेचन के कारण ही महिला गर्भ
धारण कर पाती है।
Ejaculation के दौरान योनी (vagina) में 5ml से 6ml पुरुष का वीर्य (Semen) प्रवेश करता है। इतने वीर्य में लगभग 300 million अर्थात 30 करोड़ शुक्राणु होते
है। और ये शुक्राणु (sperm) वीर्य में अपनी पूँछ के द्वारा हिलते रहते है। Ejaculation के बाद शुक्राणु योनी से फ़िलोपियन नलिका में
जाने लगते है मगर बीच में गर्भाशय की कोशिकाओं के द्वारा बहुत से शुक्राणुओं को
मार दिया जाता है। अब बचे हुए शुक्राणु फ़िलोपियन नलिका में पंहुच जाते है।
जब महिलाओं में period के 14वे दिन एक अंडा ovary से छोड़ा जाता है अब वो अंडा फ़िलोपियन नलिका में
प्रवेश करता है अब जो sperm
फ़िलोपियन नलिका में होते है उनमे race होती है उस अंडे तक पंहुचने की और सिर्फ एक sperm ही उस अंडे के साथ fertilized होता है। अब fertilization के बाद
बचे हुए sperm कुछ समय बाद मर जाते है। और जो sperm fertilize हो चूका है वह ovary में पंहुच जाता है अब उसमे एक कोशिका से दूसरी
कोशिका जुड़कर हजारो कोशिकाएं बनती है और शिशु बनने लगता है। अब हम महीने के साथ
विकास को समझेंगे।
पहला महीना:- पहले महीने में शिशु का चेहरा आकर लेने लगता है इसमें
मूंह, आँखें जबड़ा तथा गला बनने लगता है इस समय रक्त कोशिकाएं बनना शुरू हो जाती
है। प्रथम महीने में भ्रूण का आकार चावल के दाने से भी छोटा होता है।
दूसरा महीना:- दुसरे महीने में भ्रूण का चेहरा और अधिक विकास करने
लगता है इस महीने में भ्रूण के कान भी दिखाई देने लगते है पैर तथा उनकी अंगुलियाँ
बनने लगती है तथा भ्रूण में हड्डियों का निर्माण भी शुरू हो जाता है। दुसरे महीने
के दुसरे हफ्ते में सोनोग्राफी की सहायता से शिशु की धड़कन देखी जा सकती है। दिमाग
को बनाने वाली न्यूरल का निर्माण हो जाता है। इस महीने में शिशु का आकार 1.5 cm का हो जाता है।
तीसरा महीना:- इस समय तक शिशु का चेहरा, हाथ-पैर, अंगुलियाँ, पूरी तरह
से बन चुके होते है। अब शिशु के जननांग बनने लगते है इस महीने के अंत तक ह्रदय, धमनियां,
लीवर काम करना चालू कर देते है। इस समय महिला को अपना अत्यधिक ध्यान रखने की बहुत
आवश्यकता होती है शिशु के बनने का पहला भाग पूर्ण हो जाता है इसलिए इस वक़्त तक
गर्भपात होने की संभावना कम हो जाती है। इस समय शिशु का आकार 5.4 cm तक हो जाता है तथा वज़न 4 ग्राम होता है।
चौथा महीना:- इस महीने तक
जननांग भी बन जाते है इस समय शिशु सर घुमाना शुरू कर देता है। इस समय माँ पहली बार
फीटल डोपलर मशीन के द्वारा शिशु की धड़कन सुन सकती है। सामान्य अवस्था में इस समय
चिकित्सक डिलीवरी का समय बता देते है। इस
समय शिशु का वज़न 100
ग्राम तथा लम्बाई 11.5 cm हो जाती है।
पाँचवाँ महीना:- इस समय तक शिशु के सर के बाल बनना शुरू हो जाते है इस
समय शिशु के कान तथा कमर बालों से ढके होते है। यह बाल जन्म के समय तक झड जाते है
या जन्म के एक सप्ताह बाद झड जाते है। इस समय शिशु की मांसपेशियां बनना चालु हो
जाती है इससे शिशु हिल-ढुल पाता है जिसे अब माँ भी महसूस कर सकती है। इस महीने
के अंत तक वज़न 600 ग्राम तथा लम्बाई 30
सेंटीमीटर हो जाती है।
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छठा महीना:- अब शिशु की ज्ञानेन्द्रियाँ जागरूक हो जाती है तथा यह
बाहर की आवाज़ को महसूस करने लग जाता है इस महीन के अंत तक इसका वज़न 600 ग्राम तथा लम्बाई 30
सेंटीमीटर हो जाती है।
सातवा महीना:- इस महीने में शिशु आवाज़ को अधिकता से सुनने लगता है तथा
यह बाहर के प्रकाश को भी महसूस कर सकता है। अगर किसी कारणवश शिशु की इस वक़्त तक
ऑपरेशन द्वारा डिलीवरी (Pre
mature delivery) हो जाये तो वह
जीवित रह सकता है।
आठवाँ महीना:- इस समय शिशु की हलचल माँ बिलकुल सही तरह से महसूस कर
सकती है। अब शिशु सुनने के साथ देख भी सकता है। फेफड़ों के अलावा सभी अंगो का
निर्माण हो चूका होता है। इस समय शिशु का वज़न 1700 ग्राम तथा लम्बाई 42 सेंटीमीटर होती है।
नौवा महीना:- इस महीने में फेफड़े भी विकसित हो जाते है। अब शिशु
देखना, पलकें झपकाना, सिर घुमाना, आँखें बंद करना जैसे कार्य करने में सक्षम हो
जाता है। गर्भाशय में जगह कम होने के कारण शिशु की हलचल कम होने लगती है। इस समय
तक बच्चे का वज़न 2600 ग्राम तथा लम्बाई 47.6 cm होती
है।
अब बच्चा पूरी तरीके से विकसित हो जाता है तथा वह नीचे आने लग जाता है। शिशु इस दुनिया को देखने के लिए तैयार हो जाता है और सर्वप्रथम शिशु का सिर बाहर आता है यह क्रिया महिला का शरीर स्वयं करता है। महिला के द्वारा शिशु को बाहर की और धकेला जाता है और शिशु का जन्म होता है। मगर कुछ डिलीवरी में आजकल के रहन सहन तथा खान-पान के कारण महिलों में पौषक तत्वों की कमी हो जाती है। इस कारण महिलों में प्राकृतिक डिलीवरी हो पाना मुश्किल हो जाता है और बच्चे को ऑपरेशन के द्वारा प्राप्त किया जाता है।
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