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हमारे राष्ट्र भारत का इतिहास जितना पुराना है उतना पुराना किसी अन्य
देश का नहीं रहा। भारत की संस्कृति विश्व की सबसे पुरानी संस्कृति मानी जाती है
क्योंकि जब विश्व के अन्य क्षेत्रों में मानव ने बोलना तक नहीं सीखा था तब यहाँ
वेद तथा उपनिषद लिखें जा चुके थे तथा गुरुकुल में विद्यार्थियों को ज्ञान दिया
जाता था। यह मैं अपने निजी विचारों से आपको नहीं बता रहा, यह तथ्य विश्व के महान
इतिहासकारों द्वारा बताएं गए है। यहाँ के कुछ मंदिर विश्व के अन्य धर्मों से
पुराने थे, परंतु उन मंदिरों को विदेशी आक्रांता द्वारा ध्वस्त कर दिया गया।
उस समय यहाँ धर्म का अर्थ
किसी समुदाय से नहीं लिया जाता था क्योंकि विश्व में कोई और समुदाय ही नहीं था
धर्म का अर्थ था अच्छे कर्म करना, परोपकार करना इत्यादि। अधर्म का अर्थ बुरे
कर्मों से लिया जाता था। वास्तव में हमारे अच्छे कर्म ही हमारा धर्म होता है। रावण
विश्व का सबसे ज्ञानी पंडित था फिर भी उसके बुरे कर्मों के कारण उसे अधर्मी कहा
गया और एक सामान्य मनुष्य जो उस समय एक वनवासी का जीवन यापन कर रहे थे परन्तु उनके
कर्म सही और उनका स्वभाव परोपकारी था इसलिए उन्हें आज हम भगवान कहते है और उन्हें श्री
राम नाम से जानते है।
उसके बाद द्वापर युग में कौरव
तथा पांडव के बारे में उल्लिखित है। पांडव धर्म के रास्ते पर चले इसलिए उन्हें श्री
कृष्ण भगवान का साथ मिला तथा उन्हें धर्मी कहा गया तथा कौरव अपने कर्मों के
कारण अधर्मी कहलाये। जबकि ये सब एक ही समुदाय के थे।
सनातन धर्म में 4 मुख्य वेद लिखें गए ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद,
अथर्ववेद। तथा उपनिषद 200
से अधिक बताए जाते है परन्तु मुख्य उपनिषदों की
संख्या 13 है। प्रत्येक उपनिषद किसी न किसी वेद से जुड़ा हुआ
है। इनके अलावा भी कई ग्रन्थ और पुराण बताए जाते है।
इन सभी तथ्यों को जानकर हम ये बात कह सकते है की सनातन धर्म कोई समुदाय नहीं है अपितु यह जीवन यापन करने की एक वैज्ञानिक पद्धति है। इसके पुराणों में लिखा एक-एक वाक्य ब्रह्माण्ड के नियम तथा सूत्र प्रदर्शित करता है।
हम इस लेख में रामायण के बारे में नहीं जानेंगे बस हम प्रभु श्री
राम के पूर्वजों के बारे में ज्ञान अर्जित करेंगे। तथा उसके बाद हम श्री राम
के वंशजो के बारे में जानेंगे।
ब्रह्मा जी के 10 पुत्र हुए जिनमे से एक पुत्र थे मरीचि, मरीचि के
पुत्र थे महर्षि कश्यप, महर्षि कश्यप के पुत्र विवस्वान्, विवस्वान् को हम सूर्य
के नाम भी जानते है इसलिए हम भगवान श्री राम के वंश को सूर्यवंशी भी कहते
है। विवस्वान् से वैवस्वत मनु का जन्म हुआ। वैवस्वत मनु से 10 पुत्र जन्में (इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट,
शर्याति, नारिष्यन्त, प्रांशु, नाभाग, दिष्ट, करुष और प्रषध्र) इनमे से इक्ष्वाकु
सुर्यवंश के पहले राजा भी कहे जाते है। इसलिए सूर्यवंश को इक्ष्वाकुवंश भी कहा
जाता है। इनके राज्य की राजधानी कोसल (अयोध्या) बताई गयी है। इक्ष्वाकु के 100 पुत्र बताए जाते है जिनमे से ज्येष्ठ पुत्र
विकुक्षि थे तथा इक्ष्वाकु के दुसरे पुत्र निमि ने मिथिला राज्य का निर्माण किया।
इसके बाद विकुक्षि के पुत्र हए बाण तथा बाण से जन्मे अनरण्य, अनरण्य से पृथु हुए,
पृथु से त्रिशुंक ने जन्म लिया। त्रिशुंक से धुंधुमार का जन्म हुआ। धुंधुमार से
युवनाश्र्व का जन्म हुआ फिर युवनाश्र्व से मान्धाता जन्मे, मान्धाता से सुसन्धि का
जन्म हुआ सुसन्धि के पुत्र हुए ध्रुवसन्धि। ध्रुवसन्धि से भरत का जन्म हुआ।
भरत से सगर हुए उनके बाद
भगीरथ ( जिन्होंने अपने तपोबल से माँ गंगा को पृथ्वी पर उतारा था), भगीरथ से ककुस्त,
ककुस्त से रघु हुए जो बेहद पराक्रमी राजा थे इसलिए इस कुल को रघुकुल के नाम से भी
जाना जाता है। रघु से ययाति, ययाति से नाभाग, नाभाग से दशरथ जी तथा दशरथ जी से
जन्म हुआ भगवान श्री राम का। दशरथ जी के तीन और पुत्र हुए भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न।
हम सभी को पता है की फिर रामायण में क्या हुआ और अंत में श्री राम अयोध्या के राजा
बने।
श्री राम के दो पुत्र हुए
लव और कुश, भरत के दो पुत्र थे तक्ष और पुष्कर, लक्ष्मण के दो पुत्र थे चित्रांग
और चंद्रकेतु, शत्रुघ्न के भी दो पुत्र थे सुबाहु और सुरसेन।
भरत के पुत्र तक्ष ने बाद
में तक्षशिला नामक नगरी बसाई जहाँ एक विश्वविधालय था जहाँ के एक अध्यापक का नाम
चाणक्य था।
श्री राम ने पृथ्वी छोड़ने
से पहले लव को उत्तर कौशल का राज्य दिया तथा कुश को दक्षिण कौशल का राज्य दिया। लव
ने लवपूरी नगर की स्थापना की जो आज पाकिस्तान में है जिसे अभी लाहौर कहा जाता है।
लव के वंशज बाद में गुजरात गए और बाद में राजस्थान के मेवाड़ में आकर बस गए। जहाँ
उन्होंने सिसोदिया राज्य की स्थापना की इसलिए मेवाड़ का राज्यप्रतिक आज भी सूर्य
है। लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ जिससे जयास और सिकरवारो का जन्म
हुआ। इसकी दूसरी शाखा सिसोदिया राजपूत वंश थी जिसमे बेंसला और गहलोत गुहिल वंश के
राजा हुए।
दूसरी ओर कुश ने कुशावती नगर की स्थापना की
जो आज छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में स्थित है, कुश ने अपना राज पूर्व की ओर विस्तारित किया और उन्होंने एक नागवंश की कन्या के साथ विवाह किया। थाईलैंड के राजा को नागवंश का
वंशज माना जाता है इसलिए आज भी वहां के राजा को राम की उपाधि दी जाती है। कुश से
कुशवाहा (कछावा) राजपूतों का वंश आगे चला। इतिहासकारों की माने तो उनके अनुसार
केवल कुश का ही वंश आगे बढ़ा इसलिए ही शायद मुझे लव की वंशावली प्राप्त नहीं हुई।
कुश के पुत्र हुए अतिथि, अतिथि से जन्मे निषद, निषद से हुए नल, नल के बाद नभ और इस
तरह वंश पंहुचता है महाभारत के वृहदबल तक जो महाभारत में कौरव की तरफ से लड़े थे। महाभारत
में अभिमन्यु के द्वारा वृहदबल की मृत्यु हो जाती है। वृहदबल के बाद भी 30 सूर्यवंशी राजा और हुए जिनमे से एक राजकुमार
सिद्धार्थ थे। जो बाद में गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्द हुए।
और अभी हाल ही में राम
मंदिर के केस में सर्वोच्च न्यायालय ने 9 अगस्त 2019 को जब श्री राम के वंशज की मांग की थी तो तब
जयपुर की राजकुमारी दिया कुमारी ने कई सबूत पेश किये जिनमे वह दावा कर रही थी की
उनका परिवार भी श्री राम का वंशज ही है। उनके सबूतों में भी श्री राम के बाद के
सभी राजाओं का क्रमवार नाम लिखा हुआ था।
Namaste Bharat AJ (नमस्ते भारत ए जे)
NOTE
इन सभी जानकारियों में कुछ त्रुटियाँ हो सकती है, क्योंकि ये जानकारियां इतिहासकारों की किताबों, अन्य लेखों, अधूरे पन्नो से प्राप्त है। हो सकता है कुछ लोगो के पास इस लेख से अलग जानकारियां हो क्योंकि इस लेख में अलग-अलग स्थानों से प्राप्त जानकारियां सम्मिलित की गयी है, जैसे इस लेख में बताया गया है की इक्ष्वाकु के पुत्र विकुक्षि हुए परन्तु कुछ लेखों में इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षी माने जाते है तथा कुक्षी के पुत्र विकुक्षि बताए गए है।
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4 टिप्पणियाँ
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हटाएंgood supar
जवाब देंहटाएंJai shri ram
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