आज नमस्ते भारत ए जे पर हम बात करेंगे भारत वर्ष के इतिहास व संस्कृति
के बारे में जो सनातन धर्म पर टिकी हुई है, हिन्दू धर्म के बारे में हम जितना
जानेंगे उतना इस देश की संस्कृति के ऊपर हमें गर्व महसूस होगा क्योंकि हमने हमारे
“रामायण के पश्चात” लेख में बताया है कि हिन्दू कोई धर्म नहीं है अपितु ये जीवन
जीने का एक वैज्ञानिक तरीका है।
हिन्दू धर्म या सनातन
धर्म को आज हम धर्म इसलिए बोलते है क्योंकि इस समय विश्व में अनेक धर्म व समुदाय
है इस कारण इसे प्रदर्शित करने के लिए हमें इसे धर्म बोलना होता है वरना प्राचीन
समय में धर्म अधर्म का अर्थ अच्छे कर्म व बुरे कर्म से था। धर्म का अर्थ है भगवान द्वारा बनाये गए नियमों का पालन करना। सभी हिन्दू धर्म के धर्मगुरु
के द्वारा कहा जाता है कि हिन्दू धर्म एक वैज्ञानिक विचार है। वे ऐसा इसलिए कहते
है की इस धर्म में जितनी भी मान्यताएं है उनके पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण
अवश्य होता है। सनातन धर्म विश्व का सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है। आइये जानते
है भारतीय संस्कृति के बारे में... हिन्दू धर्म के बारे में।
बड़े विद्वानों तथा इतिहासकारों को समझा जाये तो हिन्दू धर्म की शुरुआत
के बारे में अभी तक कोई नहीं जान पाया है। उनकी माने तो ये धर्म इतना प्राचीन है
की उस समय की तकनीक आज की तकनीक से आगे थी परन्तु किसी घटना के चलते वे सभी तकनीक
एक दम से समाप्त हो गयी। हिन्दू धर्म के ग्रंथों के अनुसार ये सब युगों के अंत के
साथ होता है। हिन्दू धर्म में 4 युग बताए गए है त्रेता युग, सत युग, द्वापर युग तथा कलयुग।
हिन्दू धर्म में इतिहास
को 5 कल्पों में विभाजित किया गया है। ये है महत,
हिरण्य, ब्रह्म, पद्म और वराह। इस समय वराह कल्प चल रहा है। तथा इस समय तक 6 मन्वंतर निकल चुके है तथा ये 7वां मन्वंतर चल रहा
है। ये काल वैवस्वत मनु की संतानों का काल है। तथा इस समय तक 4 युगों के 27 चक्र बीत चुके है।
तथा ये 28वें चक्र का कलयुग चल रहा है।
हिन्दू धर्म का इतिहास 90,000 वर्षों से अधिक का बताया जाता है। ये इतिहासकारों
द्वारा कहा जाता है परन्तु हिन्दू धर्म लाखों वर्ष पुराना भी हो सकता है।
हम हिन्दू धर्म के इतिहास
को कालों का विभाजन करके समझने का प्रयास करते है।
1. ब्रह्म काल:- इस काल
में ही स्रष्टि की रचना हुई। धर्म ग्रंथों में बताया गया है की काल पुरुष से आदि पुरुषतथा आदि शक्ति का जन्म हुआ है। तथा इन्होंने ही त्रिदेवों को जन्म दिया है। आदि पुरुषसदाशिव को कहा गया है तथा आदि शक्ति माँ दुर्गा को कहा गया है।
2. ब्रह्मा काल:- इस
काल को ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव का काल कहते है इस काल में ब्रह्मा के 10 पुत्रों का जन्म बताया है तथा उनका विस्तार भी
इसी काल में हुआ। इसी काल में नर-नारायण, दत्तात्रेय, वराह, नृसिंह, हररुद्र अन्धक
और वामन अवतार हुए। इस काल में में ही वेदों का ज्ञान बांटा गया। इसी काल में ताड़कासुर
तथा महिषासुर का वध हुआ।
3. स्वायम्भुव मनु
काल:- यह काल 9057 ईसा पूर्व माना जाता है। सस्वायम्भुव मनु तथा
सतरूपा के दो पुत्र हुए प्रियव्रत तथा उत्तानपाद। प्रियव्रत के कुल में ही प्रथम जैन
तीर्थंकर ऋषभनाथ का जन्म हुआ। ऋषभनाथ के पुत्र भरत तथा बाहुबली थे। भरत के नाम से
ही अपने देश का नाम भारत हुआ।
4. वैवस्वत मनु काल:-
यह काल 6673 ईसा पूर्व से माना गया है। इस काल में कच्छप,
मत्स्य तथा परशुराम अवतार हुए। इसी काल में इक्ष्वाकु हुए जो हम “रामायण के पश्चात”
लेख में पढ़ चुके है। इसी कुल में भगवान श्री राम का जन्म हुआ।
5. श्री राम का काल:-
यह काल 5114 ईस्वी पूर्व से 3000 ईस्वी
पूर्व के बीच माना जाता है। इसी काल में पूरी रामायण हुयी। तथा इसी काल में पुरवा
ऋषि ने वेदों को पुनर्स्थापित किया।
6. श्री कृष्ण काल:- यह
काल 3112 ईस्वी पूर्व से 2000 ईस्वी
पूर्व के बीच माना गया है। आप इस काल को जानने के लिए महाभारत पढ़ सकते है। इसी काल
में भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद् भागवत गीता का उपदेश दिया।
7. आर्य सभ्यता काल:-
यह काल 1500 ईस्वी पूर्व से 500 ईस्वी
पूर्व के बीच माना गया है। सिंधु सरस्वती घाटी सभ्यता के पतन के पश्चात इस सभ्यता
का जन्म हुआ।
8. बुद्ध काल:- यह काल 563 ईसा पूर्व से 600 ईस्वी
तक माना जाता है। इस काल में सम्राट चन्द्र गुप्त हुए। इसी काल में सम्राट अशोक हुए। इस काल के बाद यहाँ विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा आक्रमण हुए। पहले मुग़ल
तत्पश्चात अंग्रेज।
सनातन धर्म में प्रत्येक व्यक्ति जीवन जीने तथा प्रार्थना करने के लिए
स्वतंत्र है परन्तु इन सभी अलग-अलग विचारधारा के व्यक्तयों का उद्देश्य योग ही
होता है आये इसे हम समझते है। सनातन धर्म में कुछ सम्प्रदाय है जिन्हें हम आज
समझेंगे।
1. वैष्णव सम्प्रदाय:- भगवान विष्णु की आराधना करने
वाले भक्त इस सम्प्रदाय में आते है। आप इस बात पर गौर करिए यह कोई जाति नहीं है
अगर आप भगवन विष्णु की ही आराधना करते है तो आप भी इसी सम्प्रदाय में आते है। हमारे
ग्रंथों में भगवन विष्णु के कुल 24 अवतार बताए गए है जिनमे से मुख्य अवतार 10 है
इन्हें दशावतार भी कहते है।
ये है
मत्स्य अवतार, कश्यप अवतार, वराह अवतार, नृसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, श्री राम अवतार, श्री कृष्ण अवतार, बुद्ध अवतार, कल्कि अवतार।
हमारे कुछ ग्रंथ है ईश्वर संहिता, विष्णु संहिता, महाभारत, विष्णु
पुराण, रामायण तथा ऋग्वेद इनमे वैष्णव विचारधारा दिखाई देती है अर्थात भगवान
विष्णु के बारे में अधिक बताया गया है। वैष्णव सम्प्रदाय में 4 सम्प्रदाय है जो है
श्री सम्प्रदाय, ब्रह्म सम्प्रदाय, रूद्र सम्प्रदाय, कुमार संप्रदाय है। वैष्णव मुख्यतः
भगवान श्री राम तथा भगवान श्री कृष्ण की आराधना करते है। इस संप्रदाय में प्रमुख
तीर्थ स्थल जगन्नाथ पूरी, श्रीनाथ जी, खाटूश्याम जी, बद्रीनाथ, द्वारका, तिरुपति
बालाजी, मथुरा तथा अयोध्या है।
2. शैव सम्प्रदाय:- इस संप्रदाय में भगवान शिव को मानने वाले भक्त आते
है। भगवान शिव कैलाश पर्वत पर विराजमान है। भगवान शिव से ही ब्रह्मा और श्री
विष्णु की उत्पत्ति हुई है। भगवान शिव के अवतार है।
महाकाल, तारा, भुवनेश, षोडश, भैरव, छिन्नमस्तक, गिरिजा, धूम्रवान, बगलामुखी, मातंग, कमल।
शैव सम्प्रदाय के ग्रन्थ शिव पुराण, श्वेताश्वतरा उपनिषद, आगम ग्रन्थ
आदि है। शैव सम्प्रदाय के तीर्थ स्थल 12 ज्योतिर्लिंग के अलावा अमरनाथ, केदारनाथ,
रामेश्वरम, कैलाश मानसरोवर तथा सोमनाथ है।
3. शाक्त सम्प्रदाय:-
माँ दुर्गा की आराधना करने वाले सभी भक्त शाक्त
सम्प्रदाय में आते है। इस सम्प्रदाय के अनुसार स्त्री ही इस सृष्टि की सर्वोच्च
शक्ति है। इस सम्प्रदाय में देवी आदिशक्ति को ही सबकुच्छ माना गया है। शाक्त
सम्प्रदाय के मुख्य ग्रन्थ श्री दुर्गा भागवत पुराण है, जिसमे श्री दुर्गा सप्तशती
भी आता है। शाक्त सम्प्रदाय के लोगों में श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ बहुत महत्वपूर्ण
माना जाता है। इनके मुख्य तीर्थ स्थल कालीघाट (कोलकाता), कामख्या मंदिर (गुवाहाटी)
आदि है।
4. स्मार्त संप्रदाय:- इस संप्रदाय के लोग स्मृति ग्रंथों का अनुसरण
करते है। भगवान द्वारा ऋषियों तथा मुनियों को वेदों का ज्ञान दिया गया उसके पश्चात
इनसे स्मृति ग्रंथों का निर्माण हुआ। ग्रंथों में सभी पुराण व स्मृतियाँ आती है। इस
सम्प्रदाय के लोग भगवान विष्णु, भगवान शिव तथा देवी दुर्गा सभी की आराधना करते है।
ये लोग साम्प्रदायिकता से दूर रहते है, भारत में अधिकतर लोग स्मार्त सम्प्रदाय के
ही है।
5. वैदिक सम्प्रदाय:- इस सम्प्रदाय के लोग केवल वेदों को ही मानते है
ये केवल एक ही ईश्वर की आराधना करते है जो निराकार है।
आप इन सम्प्रदायों को जाति से मत लीजिये ये वर्गीकरण सनातन धर्म की विचारधाराओं को देखकर किया गया है। सभी विचारधारा अंत में भगवान को पाने का ही प्रयास करती है।
हमने इस लेख में केवल हिन्दू धर्म का आध्यात्मिक रूप जाना है
वैज्ञानिक रूप आने वाले किसी लेख में जानेंगे।
धन्यवाद।
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2 टिप्पणियाँ
Attiyant Sundar 🙏😊
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार
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